मंगलवार, 15 मार्च 2011

राजभाषा को पूर्ण रूप से कार्यान्वित करने का रास्ता


ऐसा नहीं है कि सरकार चाहे और देश में राजभाषा पूर्ण रूप से कार्यान्यवित न हो । कहीं न कहीं सरकार के या सरकारी उच्चाधिकारियों के चाहने में ही खोंट है । वहीं नहीं चाहते कि अंग्रेजी जाये और हिन्दी आये । देश के आजाद होने के इतने वर्षों बाद भी तो राजभाषा हिंदी के बारे में लोगों का मनोवृत्ति परिवर्तन सम्भव नहीं हो पाया है । एक उपाय – यदि सरकार हिन्दी भाषा को रोजी-रोटी से जोड़ने का एक कड़ा कदम उठाये जिसके तहत सरकारी नौकरी पाने वाले चाहे जिस भी भाषा या क्षेत्र के हों उन्हें हिन्दी की जानकारी अनिवार्य होगी, तो राजभाषा सम्पूर्ण रूप से लागू हो सकती हैं । आज भारतीय सेना के तीनों कमानों का कोई भी कर्मचारी या अर्धसैनिक बलों का कोई भी कर्मचारी, चाहे वह किसी भी भाषा या क्षेत्र से आता हो, कभी भी हिन्दी भाषा का विरोध नहीं करता है । वह हिन्दी बोलता भी है और समझता भी है । मेरे समझ से भारत में बस यह ही एक रास्ता बचा है जिससे हिन्दी समस्त सरकारी कार्यालयों में आ सकती है । मेरा यह सोच सरकारी कार्यालयों के बारे में है पर सरकार चाहे तो इसे राष्ट्रहित में प्राईवेट संस्थाओं, बहुराष्ट्रीय निकायों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और स्वायत संस्थाओं में भी लागू कर सकती है । मैंने गैर हिन्दी प्रान्तों में रहकर और लगभग सभी गैर हिन्दीभाषी लोगों से बातें करके यह पाया है कि जब उनके काम की कोई बात होती है तब उन्हें हिन्दी समझने में कोई कठिनाई नहीं होती है पर यदि राजभाषा में कोई काम करना हो तो बड़े ही सहजता से कहते हुए मिलते हैं कि मुझे हिन्दी नहीं आती है और यह मेरी भाषा भी नहीं है तो भला मै क्यों सीखूँ ? कोई जबरदस्ती है क्या ? उन्हें हिन्दी सिनेमा देखने में कोई परेशानी नहीं है, हिन्दी गाना गाने में कोई परेशानी नहीं है, हिन्दी संगीत सीखने में कोई परेशानी नहीं है, उत्तर भारत भ्रमण करने में कोई परेशानी नहीं है और भारतीय क्रिकेट मैच का आँखों देखा हाल हिन्दी में भी समझ आ जाती है वगैरह, वगैरह.. । बस यदि कोई परेशानी है तो वह है राजभाषा हिन्दी में कार्य करने में ।   

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