बुधवार, 23 मार्च 2011

जिन्दगी की कहानी


जिन्दगी के रंग में
जिन्दगी के संग में                                                                      
नये नये ढंग में
नये नये रुप में
संगी मिलते रहे
मौसम खीलते रहे
मौसमों के खेल में
जिन्दगी गुज़र गई
संवर जाये जिन्दगी
इस होड़ में लगे रहे
जिन्दगी सम्भली नहीं
और जिन्दगी निकल गई ।
जिन्दगी की आस में
जिन्दगी भटक गई ।
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जिन्दगी की आस में
जिन्दगी गुजर गई
आगे का सोचा नहीं
और जिन्दगी बदल गई
आस थी कुछ खास थी
कुछ करने की चाह थी
चाह पूरी न हुई
और जिन्दगी सहम गई
सच झूठ के द्वंद में
जिन्दगी मचल गई
हार जीत की सोच में
जिन्दगी बिगड़ गई
हिन्द में हो हिन्दी ही
अरमान धरी ही रह गई
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क्या करें क्या न करें
यह सोचते ही रह गये
सोच ही कर क्या करें
जब जिन्दगी ठहर गई
पढ़ने की होड़ में
क्या क्या न जाने पढ़ गये
बिना किसी योजना के
पढ़ते ही रह गये
अपनी सभ्यता भूल
पाश्चात्य पर जा रम गये
सोचकर ही क्या करें जब
जिन्दगी बदल गई
जिन्दगी की आस में
जिन्दगी भटक गई ।
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क्या करने आये थे
किस काम में हम लग गये
सत्कर्म छोड़कर
क्या क्या करते रह गये
परमार्थ का कार्य छोड़
निज स्वार्थ में ही रम गये
क्या करने आये थे
क्या क्या करते रह गये ।
धन के अति लोभ में
जिन्दगी बिगड़ गई
इधर गई उधर गई
जाने किधर किधर गई
हाथ मलते रह गये
और जिन्दगी निकल गई
जितने हम दूर गये
दूरियाँ बढ़ती गई
फ़ाँसलों की फ़ाँद में
फ़ँसते चले गये
जिन्दगी बेचैन थी
जिन्दगी बेजान थी
फ़ैसलों की आड़ में
बहुत परेशान थी
क्या करें क्या ना करें
यह सोचकर हैरान थी
जिन्दगी की आस में
जिन्दगी निकल गई
दिन गिनते रह गये
और उम्र सारी ढल गई
हम देखते रह गये
और जिन्दगी बदल गई
जिन्दगी की आस में
जिन्दगी भटक गई ।



सोमवार, 21 मार्च 2011

होली के अवसर पर कम से कम ठंडे पेय जल से दूर रहकर पेप्सी और कोक से दूर रहने की शुरुआत करनी चाहिए........

एशिया और यूरोप को रौंद डालने के बावजूद मंगोलिया का चंगेज खाँ जिस विश्व विजय का सपना तलवार के बल पर पूरा नहीं कर पाया उसे पूरा कर दिखाया है अमरीका की कम्पनी पेप्सी और कोक ने और वह भी तलवार की नोंक से नहीं, ठंडे पेय की बोतलों से। इस समय दुनिया के 190 देशों में पेप्सीकोला का वितरण होता है। यों तो यह कम्पनी खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग) में भी काम करती है, पर इसका मुख्य कारोबार ठंडे पेय का ही है।
उपर्युक्त विषयों पर योग गुरु श्री रामदेव बाबा का काफ़ी योगदान रहा है । वह लगभग अपने प्रत्येक शिविरों में पेप्सी और कोक जैसे ठंडे पेय जलों का उपयोग करने से होने वाले परिणामों की चर्चा अवश्य करते हैं । उनकी बातों पर अमल करें और इनका उपयोग करने से बचें ।
विश्व विजय के आखिरी मुकाम तक पहुँचने के लिए पेप्सी ने ऐसा कोई तरीका नहीं, जो अपनाया न हो। प्यास मनुष्य की सहज प्राकृतिक जरूरत है। इसके सहारे अपना व्यापारिक साम्राज्य खड़ा करने की पेप्सी की प्यास बढ़ती ही जा रही है। आम लोगों के सम्मोहन के लिए इसने क्या-क्या नहीं किया हैः अन्तरराष्ट्रीय खेलों का प्रायोजन, नामी फिल्मी हस्तियों, खिलाड़ियों द्वारा विज्ञापन और सीरियल। पर नाच, गाना, खेलना ही पेप्सी का हथियार नहीं हैं, इसका इतिहास हत्याओं, धोखाधड़ी, छल-फरेबी, जालसाजी जैसे अपराधों से भरा पड़ा है।



मंगलवार, 15 मार्च 2011

राजभाषा को पूर्ण रूप से कार्यान्वित करने का रास्ता


ऐसा नहीं है कि सरकार चाहे और देश में राजभाषा पूर्ण रूप से कार्यान्यवित न हो । कहीं न कहीं सरकार के या सरकारी उच्चाधिकारियों के चाहने में ही खोंट है । वहीं नहीं चाहते कि अंग्रेजी जाये और हिन्दी आये । देश के आजाद होने के इतने वर्षों बाद भी तो राजभाषा हिंदी के बारे में लोगों का मनोवृत्ति परिवर्तन सम्भव नहीं हो पाया है । एक उपाय – यदि सरकार हिन्दी भाषा को रोजी-रोटी से जोड़ने का एक कड़ा कदम उठाये जिसके तहत सरकारी नौकरी पाने वाले चाहे जिस भी भाषा या क्षेत्र के हों उन्हें हिन्दी की जानकारी अनिवार्य होगी, तो राजभाषा सम्पूर्ण रूप से लागू हो सकती हैं । आज भारतीय सेना के तीनों कमानों का कोई भी कर्मचारी या अर्धसैनिक बलों का कोई भी कर्मचारी, चाहे वह किसी भी भाषा या क्षेत्र से आता हो, कभी भी हिन्दी भाषा का विरोध नहीं करता है । वह हिन्दी बोलता भी है और समझता भी है । मेरे समझ से भारत में बस यह ही एक रास्ता बचा है जिससे हिन्दी समस्त सरकारी कार्यालयों में आ सकती है । मेरा यह सोच सरकारी कार्यालयों के बारे में है पर सरकार चाहे तो इसे राष्ट्रहित में प्राईवेट संस्थाओं, बहुराष्ट्रीय निकायों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और स्वायत संस्थाओं में भी लागू कर सकती है । मैंने गैर हिन्दी प्रान्तों में रहकर और लगभग सभी गैर हिन्दीभाषी लोगों से बातें करके यह पाया है कि जब उनके काम की कोई बात होती है तब उन्हें हिन्दी समझने में कोई कठिनाई नहीं होती है पर यदि राजभाषा में कोई काम करना हो तो बड़े ही सहजता से कहते हुए मिलते हैं कि मुझे हिन्दी नहीं आती है और यह मेरी भाषा भी नहीं है तो भला मै क्यों सीखूँ ? कोई जबरदस्ती है क्या ? उन्हें हिन्दी सिनेमा देखने में कोई परेशानी नहीं है, हिन्दी गाना गाने में कोई परेशानी नहीं है, हिन्दी संगीत सीखने में कोई परेशानी नहीं है, उत्तर भारत भ्रमण करने में कोई परेशानी नहीं है और भारतीय क्रिकेट मैच का आँखों देखा हाल हिन्दी में भी समझ आ जाती है वगैरह, वगैरह.. । बस यदि कोई परेशानी है तो वह है राजभाषा हिन्दी में कार्य करने में ।   

राजभाषा के हित में


*  कड़वा सत्य - हिन्दी को राजभाषा न बनने में कहीं न कहीं ऊँचे पदों पर आसीन सरकारी कुर्सी तोड़ने वाले हिन्दी भाषी व्यक्तित्व की ही मेहरबानी है ।

गुरुवार, 3 मार्च 2011

कैसे होगा भारत उदय ?


कैसे होगा भारत उदय !
शुरु किया मंगल पांडे ने
अरमानों की बली चढाकर
लक्ष्मी भी मैदान में आयी
अमन चमन का स्वप्न सजाया
पर हाथ कुछ भी न आया
उअनको तो अपनो ने लूटा ।
हो भारत आजाद हमारा
अहम भूमिका बापू सुभाष की
साकार किया शहीदों ने मिलकर
और फल खाया चाचा ने आकर
किन-किन की गुणगान करें हम
इन सबको इतिहास ने देखा
मौका मिले तो क्यों हम छोड़े
क्यों गंगा में हाथा न धो लें
इसने धोया उसने धोया
न जाने किन-किन ने धोया
जिसे मिला उसी ने धोया
स्वतंत्रता सेनानी ने धोया
बचा हुआ अब नेता धो रहे
सरकारी अमला भी धो रहे
फिर भी सपना भारत उदय का !!
संजोये दिल में हैं बैठे
यह व्यर्थ का सपना केवल
सपने में साकार है होता
ऊषा की बेला होते ही
अपने को भी वहीं पायेंगे
भला कैसे हो भारत उदय ?
कहाँ से होगा भारत उदय !!!

गणतंत्र भारत का गणतंत्रता दिवस, 26 जनवरी –

विचार मन्थन योग्य बात यह है कि क्या आज भी आजाद भारत में आम आदमी आजादी की साँस ले रहा है ? गुलाम हम पहले भी थे और आज भी हैं, केवल चोला बदल गया है । पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे, आज हम अपनों के गुलाम हैं । अंग्रेजों के समय कुछ नियम कानुन थे पर आज सारे नियम कानुन ताख पर रख दिये गये हैं । नौकरशाह, नेता या बॉस जो करें वहीं नियम है । अंग्रेजों से आजादी तो मिली ठीक पर वह कागज पर ही रह गयी और आजतक कागज पर ही घुम रही है । हम केवल कागज पर ही लिखते-पढ़ते हैं कि हम आजाद हैं पर वास्तव में यह आजादी जमीनी हकीकत में आजतक तब्दील नहीं हो पाई । अपने हक के लिये अपनों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है फिर भी न्याय नहीं ! किसी के पास अनाज सड़ रहा है तो कोई खाये बगैर मर रहा है । यह कैसी आजादी

देख तमासा रोटी का !


देख तमासा रोटी का........
रोटी खातिर सब हैं आये
MD आये DM आये
GM और AM भी आये
काम के खातिर हम भी आये
कुछ आये जीने के लिये
तो कुछ आये जाने के लिये
कुछ आये पीने के लिये
तो कुछ आये पाने के लिये
पर कोई अबतक न आया
जो कुछ करे श्रमिकों के लिये
श्रमदान के बलपर ही तो
अपना उल्लू सीधा करते
रूस, जापान की सैर हैं करते
संचित धन को हल्का करते
चुपके – चुपके पॉकेट भरते
बातें करते राष्ट्रहित की
पर काम तो करते अपने हित की
यदि किसी ने मुँह खोली तो उस बंदे की खैर नहीं है
उसके जैसा कोई बैर नहीं है
रोटी बिना कोई सैर नहीं है
रोटी गई तो और नहीं है
छोड़ सोचना इधर उधर का
सोच तु बस अपने तन का
और फिर देख तमासा रोटी का ।