गुरुवार, 2 जून 2011

मेरे विचार से भारतीय रेल भी राजभाषा विकास का एक प्रभावी माध्यम बन सकता है ---


देश स्वाधीनता के बाद से ही राजभाषा के विकास में भारत सरकार के साथ साथ अनेकोनेक स्वायत्त संस्थाएँ भी जुटी हुई हैं । भारत सरकार के आदेश के अनुसार पूर्ण सरकारी, अर्ध सरकारी तथा केन्द्र सरकार के स्वामित्वाधीन सभी तरह के उपक्रमों ने भी राजभाषा के विकास में अभी भी काफी प्रयास जारी रखा है । पर यहाँ दो तरह की बातें आ जाती है – कुछ उपक्रम आम आदमी से प्रत्यक्ष रुप से जुड़े होते हैं और कुछ अप्रत्यक्ष रुप से । प्रत्यक्ष रुप से जुड़े प्रतिष्ठान राजभाषा प्रसार में अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े प्रतिष्ठानों की अपेक्षा बेहतर भूमिका निभा सकते हैं । इसी क्रम में  दोनों तरह के प्रतिष्ठानों पर प्रस्तुत है मेरा एक विचार :
उदाहरण के तौर पर भारतीय रिज़र्व बैंक को लेते हैं । जैसे बैंकिंग सेक्टर में भारतीय रिज़र्व बैंक की राजभषा की उत्कॄष्ट भूमिका की जितनी भी सराहना की जाये कम है । बैंकिंग सेक्टर में भारतीय रिज़र्व बैंक जो बैंकों का बैंक है, एक ऐसी स्वायत्त संस्था है जिसने अपने आन्तरिक कार्यों में राजभाषा का इतना व्यवहारिक प्रसार किया है जितना कि भारत सरकार के विभागों में नहीं हो पाया है । भारत सरकार में केवल कागजी आँकड़ो का खेल खेला जाता है, वास्तविक धरातल पर कार्यान्वयन की कोई मनोवृत्ति नहीं होती । जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक के उत्तम और सकारात्मक विचारधारा वाले राजभाषा अधिकारी वास्तविक धरातल पर कार्य पहले और आँकड़े इकट्ठा करने की प्रक्रिया को बाद में पूरी करते है जिसमें पहला नाम सेवानिवृत्त उप महाप्रबन्धक डॉ. दलसिंगार यादव जी का आता है और वर्त्तमान में यह कार्यभार कोलकाता रिज़र्व बैंक के राजभाषा अधिकारी श्री काजी मो. ईसा साहब सम्भाले हुए हैं । डॉ. यादव ने भारतीय रिज़र्व बैंक में राजभाषा को एक ऐसे मुकाम पर पहुँचा दिया है जिसपर केवल मात्र अमल करने से ही राजभाषा का विकास होता रहेगा । एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि डॉ. साहब ने भारतीय रिज़र्व बैंक में अपने कार्य काल में कम्प्यूटर पर राजभाषा प्रयोग के क्रांति की लहर दौड़ा दी थी । इसके साथ भारतीय रिज़र्व बैंक ने सभी राष्ट्रीकृत बैंकों में राजभाषा का कार्यान्वयन युद्ध स्तर पर पूरा किया है और भारतीय रिज़र्व बैंक के राजभाषा अधिकारी राष्ट्रहित में राजभाषा के व्यवहारिक प्रसार हेतु अपने आप से प्रतिबद्ध हैं, उन्हें किसी के निदेश की जरुरत नहीं है । वे निश्चल भाव से सदैव राजभाषा हेतु समर्पित हैं । लेकिन जब बात आती है आम जनता से प्रत्यक्ष रुप से जुड़ने की तो मेरे समझ से केवल एक ही नाम सामने आता है और वो है भारतीय रेल । एक ऐसा तंत्र जिसकी छोटी से छोटी इकाई विभिन्न जाति, धर्म, भाषा और विचार वाले भारतीयों के दिलों को स्पर्श करते हुए प्रतिदिन गुजरती है । प्रत्येक भारतीय कभी न कभी किसी न किसी रुप में भारतीय रेल के सम्पर्क में जरुर आता है । अतः यह एक ऐसा माध्यम है जो प्रत्यक्ष रुप से आम भारतीय के दिलों से जुड़ा हुआ है और अपने विचारों को अंततः 90 %  भारतीयों तक पहुँचा सकता है । मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि केवल सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग करवा देने से तो कागज़ी धरातल पर लक्ष्य प्राप्ति के आँकड़े दर्शाये जा सकते हैं पर वास्तव में क्या लोगों में हिन्दी के प्रति मनोवृत्ति बदल पायेंगे । जरुरत है भारत सरकार को एक ऐसी योजना बनाने कि जिससे प्रत्येक भारतीय आदरपूर्वक हिन्दी को अपनाए जिससे उसे अपने जीवन में हिन्दी की महत्ता की समझ आये और योजना यदि भारतीय रेल के माध्यम से चलायी जाये तो निश्चित रुप से सफलता हाथ लगेगी । जहाँ तक कार्यालयों में हिन्दी प्रयोग की बात है तो मैंने ऐसा देखा है कि बहुत सारे लोग पैसे के लालच में या मजबुरी में हिन्दी पढ़ते हैं और कुछ लोगों की मातृभाषा हिन्दी होते हुए भी अपने आप को औरों के समक्ष इस तरह से पेश करते हैं जैसे कि उनके पूर्वज ब्रिटेन से ताल्लुक रखते हैं और जो व्यक्ति हिन्दी में कार्यालयीन कार्य करता है उसके जैसा बेवकूफ कोई नहीं है । आखिर ऐसा क्यों ? जिस देश की आप खाते हो, और जिसके चलते अपकी पहचान बनती है , उसी की राष्ट्रभाषा में कार्य करने में इतनी तकलीफ । अतः पहले ऐसे लोगों की मनोवृत्ति बदलनी पड़ेगी । इन्हें एहसास दिलाना पड़ेगा कि हिन्दी आपकी बुनियादी जरुरत है और इसके बगैर आपका कोई भी सरकारी कार्य सम्भव नहीं है । आप जितनी चाहे उतनी भाषाएँ सीखो पर अपने राष्ट्रभाषा को सदा राजभाषा के रुप में प्रयोग में लाना पड़ेगा ।
मैं यह समझता हूँ कि भारतीय रेल के उच्चाधिकारी और राजभाषा अधिकारी यदि चाहे और भारत सरकार ऐसी कारगर योजना बनाकर सख़्त कदम उठाये तो हिन्दुस्तान के कोने-कोने में हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना कोई बड़ी बात नहीं होगी । बस राष्ट्रहित में राजभाषा के प्रति सकारात्मक इच्छाशक्ति की जरुरत है । जब जन-जन में हिन्दी के प्रति राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत हो जायेगी और लोग उसकी महत्ता से अवगत हो जायेंगे तो फिर कहने की जरुरत नहीं पड़ेगी । वे स्वयं ही हिन्दी सीखने लगेंगे और रुचि लेकर अपने बेटे-बेटियों को भी सीखायेंगे तथा खुद कार्यालयीन कार्य भी हिन्दी में करने लगेंगे । यह काम जोर जबरदस्ती से सम्भव नहीं है । इसके लिये सबके दिलों में राष्ट्रभाषा और राजभाषा के प्रति राष्ट्रप्रेम का संचार करना होगा और इसे कार्यान्वित करने का जिम्मा भी भारत सरकार का ही है । अतः आज के शिक्षित युवा वर्ग से अनुरोध है कि अपने दिलों में हिन्दी के प्रति सकारात्मक रुख पैदा करें और हिन्दी भाषा का सम्मान करें । अपने इस प्रस्तुतिकरण से मैं यह समझता हूँ कि यदि इसके पाठक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से भारत सरकार के राजभाषा विभाग तक यह संदेश पहुँचा पाये तो हो सकता है कि राजभाषा विभाग कागज़ी आँकड़े इकट्ठा करना छोड़कर भारतीय रेल के माध्यम से हिन्दी को व्यवहारिक धरातल पर उसे सम्पूर्ण राजभाषा का सम्मान दिला पाने में सफल हो पाये ।

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