मंगलवार, 13 सितंबर 2011

हिन्दी दिवस विशेषांक


14 सितम्बर - हिन्दी दिवस
हिन्दी दिवस विशेषांक
जिस तरह से कोई जरुरी नहीं कि फौज में रहकर ही देश की रक्षा की जा सकती है, समाज सेवी संगठन खोलकर ही समाज की सेवा की जा सकती है और राजनेता बनकर ही देश चलाया जा सकता है उसी तरह से कोई जरुरी नहीं कि राजभाषा विभाग की नौकरी करने वाले ही केवल हिन्दी का काम करते रहेंगे बाकी किसी और की यह जिम्मेदारी नहीं बनती है । कबतक दूसरे के मत्थे इस काम को टालते रहेंगे । इन सबके बगैर भी ये सारे कार्य किये जा सकते हैं । बस जरुरत है तो केवल इच्छाशक्ति की,  जिसकी हमारे बन्धुओं में कमी है । किसी भी मुहिम को पूरा करने के लिये दो रास्ते होते हैं – प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष । प्रत्यक्ष रुप से तो आजादी से लेकर आजतक राजभाषा का सम्पूर्ण कार्यान्वयन कार्य पूरा न हो सका । अतः अप्रत्यक्ष रुप ही एक प्रभावकारी माध्यम बचता है । लोगों में जागृती जगाकर ही हिन्दी को उसका स्थान दिलाया जा सकता है । मेरा यह व्यक्तिगत सोच है कि बहुत हो चुका, अब तो हिन्दुस्तान में हिन्दी दिवस मनाया बन्द करो । कितनी हास्यास्पद बात है कि अपने ही देश में जिसकी राष्ट्रभाषा हिन्दी है, उसे राजभाषा बनाने के लिये कई  दशकों से हिन्दी दिवस मनाते आ रहे हैं फिर भी मुकाम हासिल नहीं हुआ । आखिर क्यों ? अपने देश में यदि हम अपने प्रांतीय भाषाओं जैसे बंगला, उड़िया, तेलगु, तमिल आदि के विकास के लिये उनका दिवस मनाते हैं तो यह बात तो समझ में आती है और तर्कसंगत भी है पर हिन्दी राष्ट्र में हिन्दी दिवस ! क्या बात है !!! सरकार की क्या विडम्बना है ? हमारा पूरा हिन्दुस्तान ही तो हिन्दी है । सबकुछ हिन्दीमय होना चाहिये । हमारी सरकार, राजनेता और नौकरशाहों की यह नकारात्मक सोच और प्रयासों का फल है कि आजतक हम हिन्दी दिवस मना रहें है और मनाते भी रहेंगे । हिन्दी दिवस मनाने का अर्थ है कि हम हिन्दी का कार्यान्वयन कर पाने में असमर्थ और लाचार हैं और इसीलिये लोगों को इसकी याद दिला रहे हैं और उनमें हिन्दी में काम करने की जागृती पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं ।


दिल से आप चाहो अगर, भारत का उत्थान।
परभाषा को त्याग के, बाँटो हिन्दी ज्ञान।।

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